Friday, June 9, 2023

लंका_दहन

 🔥लंका_दहन 🔥


    जब रावण की लंका दहन की बात होती है तो सबसे पहले हनुमान जी का नाम आता है ! लेकिन इस बात की जानकारी अब तक किसी को नहीं होगी कि रावण की लंका हनुमान जी नें नहीं, बल्कि पांच लोगों ने मिलकर जलाई थी। विद्वानों के अनुसार रामचरित मानस में इस बात का उल्लेख हैं कि लंका केवल हनुमान जी ने नहीं, बल्कि पांच लोगों ने मिलकर जलाई थी।


🔥लंका दहन के बाद जब हनुमान जी वापस श्रीराम के पास पहुंचे तो उन्होंने पूछा मैंने तो आपको सीता की कुशलक्षेम लेने भेजा था। आपने तो लंका ही जला डाली। तब परम बुद्धिमान हनुमान जी ने भगवान राम को उत्तर देते हुए कहा। महाराज लंका मैंने नहीं बल्कि "आपको मिलाकर " पांच लोगों ने जलाई है। आश्चर्य से भगवान राम ने पूछा कैसे और किन पांच लोगों ने लंका जलाई और मैं कैसे शामिल हूं।


इन पांच ने जलाई लंका🔥


हनुमान जी ने कहा कि प्रभु लंका जलाई १. आपने, २. रावण के पाप ने, ३. सीता के संताप ने, ४. विभीषण के जाप ने और ५. मेरे पिता वायु देव ने। जब श्री राम ने इस में पूछा कि यह कैसे तो हनुमान जी ने इसका जो उत्तर दिया वह आप भी पढि़ए कैसे-


1- 🔥लंका जलाई आपने : - हनुमान जी ने कहा भगवान सभी को पता है कि बिना आपकी मर्जी के पत्ता तक नहीं हिल सकता है ,फिर लंका दहन तो बहुत बड़ी बात है। 

हनुमान जी ने कहा कि जब मैं अशोक वाटिका में छिपकर सीता माता से मिलना चाह रहा था, वहां राक्षसियों का झुंड था। जिनमें एक आपकी भक्त त्रिजटा भी थी। उसने मुझे संकेत दिया था कि आपने मेरे जरिए पहले से ही लंका दहन की तैयारी कर रखी है। इसे तुलसीदास ने भी रचित रामचरित मानस में लिखा है कि जब हनुमान पेड़ पर बैठे थे, त्रिजटा राक्षसियों से कह रही थी-


सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना

सीतहि सेई करौ हित अपना।

सपने बानर लंका जारी,

जातुधान सेना सब मारी।

यह सपना मैं कहौं पुकारी

होइहि सत्य गये दिन चारी।


2- 🔥रावण के पाप ने : - हनुमान जी ने कहा हे प्रभु भला मैं कैसे लंका जला सकता हूं। उसके लिए तो रावण खुद ही जिम्मेदार है। क्योंकि वेदों में लिखा है, जिस शरीर के द्वारा या फिर जिस नगरी में लोभ, वासना, क्रोध, पाप बढ़ जाता है, उसका विनाश सुनिश्चित है। तुलसीदास लिखते हैं कि हनुमान जी रावण से कह रहे हैं-


सुनु दसकंठ कहऊं पन रोपी,

बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।

संकर सहस बिष्नु अज तोही,

सकहिं न राखि राम कर द्रोही।


3- 🔥सीता के संताप ने : - हनुमान जी ने श्रीराम से कहाए प्रभु रावण की लंका जलाने के लिए सीता माता की भूमिका भी अहम है। जहां पर सती-सावित्री महिला पर अत्याचार होते हैं, उस देश का विनाश सुनिश्चित है। सीता माता के संताप यानी दुख की वजह से लंका दहन हुआ है। सीता के दुख के बारे में रामचरित मानस में लिखा है-


कृस तनु सीस जटा एक बेनी,

जपति ह्रदय रघुपति गुन श्रेनी।

निज पद नयन दिएं मन रामम पद कमल लीन

परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।।


4-🔥 लंका जलाई विभीषण के जाप ने : - हनुमान जी ने कहा कि हे राम! यह सर्वविदित है कि आप हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। और विभीषण आपके परम भक्त थे। वह लंका में राक्षसों के बीच रहकर राम का नाम जपते थे। उनका जाप भी एक बड़ी वजह है लंका दहन के लिए। रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने लिखा है कि लंका में विभाषण जी का रहन-सहन कैसा था-


रामायुध अंकित गृह शोभा बरनि न जाई

नव तुलसिका बृंद तहं देखि हरषि कपिराई।


5- 🔥लंका जलाई मेरे पिता ने : - हनुमान जी ने कहा भगवन लंका जलाने वाले पांचवें सदस्य मेरे पिता जी पवन देव हैं, क्योंकि जब मेरी पूंछ से एक घर में आग लगी थी तो मेरे पिता ने भी हवाओं को छोड़ दिया था। जिससे लंका में हर तरफ आग लग गई।


तुलसीदास जी ने लिखा है-


हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास

अट्टहास करि गरजा पुनि बढि लाग अकास।


          🙏#जय_श्री_राम 🙏

Saturday, May 13, 2023

महाबली हनुमान

  

  "महाबली हनुमान"


           सुग्रीव, बाली दोनों ब्रह्मा के औरस (वरदान द्वारा प्राप्त) पुत्र हैं, और ब्रह्माजी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है। जब बाली को ब्रह्माजी से ये वरदान प्राप्त हुआ कि जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी, और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा। 
           बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था। उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी। रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड की कोई सीमा न रही। अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था। और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई।
          अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था। हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था। अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था। एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था। और बार-बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- "है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो। है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो, जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे।" इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था।
           संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी! राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे। बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा, और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- "हे वीरों के वीर ! हे ब्रह्म अंश ! हे राजकुमार बाली ! (तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शान्त जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो, हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो, फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो, अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो। इससे तुम्हे क्या मिलेगा। तुम्हारे औरस पिता ब्रह्माके वरदान स्वरूप कोई तुम्हें युद्ध मे नही हरा सकता। क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा। उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी। इसलिए हे कपि राजकुमार ! अपने बल के घमण्ड को शान्त कर, और राम नाम का जाप कर। इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा। और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जायेंगे।"
         इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- "ऐ तुच्छ वानर ! तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को, जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है, और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड-खंड हो जाता है। जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम की, और जिस राम की तू बात कर रहा है, वो है कौन ? केवल तू ही जानता है राम के बारे में, मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना, और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है।"
        हनुमान जी ने कहा- "प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी हैं। उनकी महिमा अपरम्पार है, ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाय।" बाली बोला- "इतना ही महान है राम तो बुला जरा, मैं भी तो देखूँ कितना बल है उसकी भुजाओं में।" बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे।
        हनुमानजी ने कहा- "ए बल के मद में चूर बाली ! तू क्या प्रभु राम को युद्ध में हराएगा। पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा।" बाली बोला- "तब ठीक है कल-के-कल नगर के बीचों-बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा।" हनुमान जी ने बाली की बात मान ली। बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा।
          अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे। तभी उनके सामने ब्रह्माजी प्रकट हुए। हनुमान जी ने ब्रह्माजी को प्रणाम किया और बोले- "हे जगत पिता ! आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा।" ब्रह्माजी बोले- "हे अंजनीसुत ! हे शिवांश ! हे पवनपुत्र ! हे राम भक्त हनुमान ! मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दण्डता के लिए क्षमा कर दो,और युद्ध के लिए न जाओ।" ऐसी ही रोचक और ज्ञानवर्धक कथाओं को पढ़ने के लिये हमारे फेसबुक पेज–'श्रीजी की चरण सेवा' के साथ जुड़े रहें। हनुमान जी ने कहा- "हे प्रभु ! बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता, परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता। बाली ने मुझे युद्ध के लिए चुनौती दी है, जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा। अन्यथा सारी विश्व में ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है।" तब कुछ सोच कर ब्रह्माजी ने कहा- "ठीक है हनुमान जी, पर आप अपने साथ अपनी समस्त शक्तियों को साथ न लेकर जायें, केवल दसवां भाग का बल लेकर जायें। बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दें तथा युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें।" हनुमान जी ने ब्रह्माजी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकल गये।

         बाली नगर के बीच में एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था। और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार-बार हनुमान जी को ललकार रहा था। पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था। हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे। बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा। ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पाँव अखाड़े में रखा, उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई। बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई, बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे। उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया, बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा। उसका शरीर फट कर खून निकलने लगा। बाली को कुछ समझ नही आ रहा था।

         तभी ब्रह्माजी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- "पुत्र ! जितना जल्दी हो सके यहाँ से दूर अति दूर चले जाओ।" बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा रहा, उसने ब्रह्माजी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दी। सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया। कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रह्माजी को देख कर बोला- "ये सब क्या है, हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना, फिर आपका वहाँ अचानक आना और ये कहना कि वहाँ से जितना दूर हो सके चले जाओ, मुझे कुछ समझ नही आया ?" ब्रह्माजी बोले- "पुत्र ! जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तुममें समा गया, तब तुम्हें कैसा लगा।" बाली बोला- "मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रहा है। ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार में मेरे तेज का सामना कोई नही कर सकता। पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा।" 
          ब्रह्माजो बोले- "हे बाली ! मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा। पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके। सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वे तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते।" 
         इतना सुन कर बाली पसीना-पसीना हो गया। और कुछ देर सोच कर बोला- प्रभु ! यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियाँ हैं तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे।
          ब्रह्माजी ने कहा- "हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पायेंगे। क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नही सह सकती।" ये सुन कर बाली ने वही से हनुमान जी को दण्डवत प्रणाम किया और बोला। "जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शान्त और रामभजन गाते रहते हैं और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूँ और उनको ललकार रहा था। मुझे क्षमा करें।" आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया।


                                 "जय श्री राम"

Tuesday, May 2, 2023

कर्म और भाग्य

 🙏कर्म और भाग्य🙏

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा सभा बुलाकर प्रश्न किया कि

“मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना , 

किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने

जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों

 इसका क्या कारण है ?

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर होगये ..क्या जबाब दें कि एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं ।

सब सोच में पड़गये । कि अचानक एक वृद्ध खड़े हुये और बोले महाराज की जय हो ! 

आपके प्रश्न का उत्तर भला कौन दे सकता है , आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में यदि जाएँ तो 

वहां पर आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है ।

राजा की जिज्ञासा बढ़ी और घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं ,

 सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा 

“तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से पीड़ित हूँ ।

तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं वे दे सकते हैं ।”

राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, 

पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा किन्तु यह क्या महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का रह गया ,दृश्य ही कुछ ऐसा था, 

वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे

राजा को देखते ही महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ”

 मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है ,

 आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,

जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर का दे सकता है ”

सुन कर राजा बड़ा बेचैन हुआ बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न, 

उत्सुकता प्रबल थी कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता हूँ क्या होता है ।

राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर किसी तरह प्रातः होने तक उस गाँव में पहुंचा, गाँव में पता किया और उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही और शीघ्रता से बच्चा लाने को कहा 

जैसे ही बच्चा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया ।

राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुनो लो –

तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों

भाई व राजकुमार थे

एकबार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए। तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।

अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली जैसे तैसे हमने चार बाटी सेकीं और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गये ।

 अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा –

“बेटा मैं दस दिन से भूखा हूँ अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो ,

 मुझ पर दया करो जिससे मेरा भी जीवन बच जाय, इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमें भी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी ”

इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले “तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग खाऊंगा ?

 चलो भागो यहां से ….।

वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही 

किन्तु उन भइया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि “बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा

भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये ,

 मुझे भी बाटी मांगी… तथा दया करने को कहा किन्तु 

मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि  चलो

आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ

बालक बोला “अंतिम आशा लिये वो महात्मा हे राजन !

आपके पास आये , आपसे भी दया की याचना की

 सुनते ही आपने उनकी दशा पर दया करते हुये ख़ुशी से अपनी बाटी में से आधी बाटी आदरसहित उन महात्मा को दे दी

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और जाते हुए बोले “

तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा ”

बालक ने कहा “इस प्रकार हे राजन ! 

उस घटना के आधार पर हम अपना भोग, भोग रहे

 हैं ,

धरती पर एक समय में अनेकों फूल खिलते हैं, किन्तु सबके फल रूप, गुण, आकार-प्रकार, स्वाद में भिन्न होते हैं ” ..।

इतना कहकर वह बालक मर गया ।

जो असंख्य जीवो के लिए दुर्लभ है

वह मनुष्य जन्म हमें दिया

जहाँ असंख्य जीवो को कूड़ा ढूंढने पर भी भोजन नहीं मिलता

हमे ईश्वर ने धन्यवान कुल में जन्म दिया

ईश्वर ने हमपे भरोसा किया कि हम सब जीवो को

सुख देंगे इसी लिए ईश्वर ने हमे यह सब कुछ दिया

अब भरोसे पर खरा उतरने की बारी हमारी है...

लंका_दहन

 🔥लंका_दहन 🔥     जब रावण की लंका दहन की बात होती है तो सबसे पहले हनुमान जी का नाम आता है ! लेकिन इस बात की जानकारी अब तक किसी को नहीं होगी...